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शिवाजी महाराज बृजभान सिसोदिया के वंशज थे, जो मेवाड़ के सिसोदिया पीपा क्षत्रिय राजपूत और शुद्ध क्षत्रिय राजपूत परंपरा से थे।

🔥 संत पीपा जी से छत्रपति शिवाजी तक: छापामार युद्ध की राजपूताना परंपरा

🔱 छापामार युद्ध के आद्य प्रवर्तक: संत शिरोमणि पीपा जी महाराज

संत पीपा जी केवल एक संत नहीं थे, वे एक क्षत्रिय राजा, योद्धा, और युद्धनीति के मर्मज्ञ भी थे। उनके जीवन का संघर्ष और साधना, केवल मोक्ष तक सीमित नहीं थी, बल्कि धर्म और राष्ट्र की रक्षा भी उनका परम कर्तव्य था।

🛡️ “छापामार युद्ध” की पहली नींव संत पीपा जी ने ही रखी, जब उन्होंने विदेशी आक्रांताओं और आततायी शक्तियों से टकराने के लिए गुरिल्ला शैली को अपनाया।

⚔️ तीन महायुद्धों के विजेता, आध्यात्मिक योद्धा

संत पीपा जी ने अपने जीवनकाल में तीन महायुद्ध लड़े, जिनमें उन्होंने केवल अस्त्र-शस्त्र नहीं चलाए, बल्कि धर्म, नीति और त्याग की ऊर्जा से योद्धाओं को प्रेरित किया।

1. गागरोण का युद्ध - गागरोण दुर्ग पर मालवा के हमले के समय यवनों की सेना ने हमला किया | मलिक सरावतदार व फिरोज खां इस सेना का नेतृत्व कर रहे थे | जवाब में राजा प्रताप सिंह जी चौहान की शेर के दहाड़ वाली सेना ने भीषण हमला कर दिया |
यवन सेना को जान बचाकर भागना पड़ा |

2. टोडाराय का युद्ध - इस युद्ध मे फिरोजशाह तुगलक ने टोडा पर आक्रमण किया लल्लन पठान के सामने राजा डूंगरसिंह को सेना को हथियार डालने का आदेश देना पड़ा इसका पता राजा डूंगरसिंह जी के ससुर चित्तौड़गढ़ के राणा रायमल सिंह सिसोदिया को पड़ा | उन्होंने एक बैठक बुलाई वहां पर एक गागरोण गढ़ का सेनापति भी मौजूद था उसने राव प्रताप सिंह के बारे में बताया तो राणा रायमल सिंह जी ने मदद हेतु गढ़ गागरोण न्यौता भेजा न्यौता मिलने पर राव प्रताप सिंह अपनी सेना के साथ लल्लन पठान की सेना पर टूट पड़े जिसमे लल्लन पठान मारा गया ... राजपाट वापस डूंगरसिंह को सौंप दिया

✨ 52 क्षत्रिय राजा उनके अनुयायी बने

उनके तेज, तप और विचारों से प्रभावित होकर 52 क्षत्रिय राजा, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया, संत पीपा जी से दीक्षित हुए और “धर्मरक्षा के लिए जीवन समर्पण” की शपथ ली।

👉 यही 52 दीक्षित राजा कालांतर में “पीपा क्षत्रिय राजपूत” वंश के रूप में प्रसिद्ध हुए, जिनकी रगों में आज भी राजपूताना रक्त, स्वाभिमान और शौर्य बहता है।

🏹 यह परंपरा कैसे पहुँची महाराणा प्रताप और शिवाजी तक?

🦁 महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप:

संत पीपा जी द्वारा स्थापित छापामार युद्ध की यह शैली महाराणा सांगा से लेकर महाराणा प्रताप तक एक अखंड धरोहर की तरह पहुँची।
महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के रण में इसी युद्धनीति का सहारा लिया और मुगलों की विशाल सेना को मेवाड़ी चट्टानों से टकराकर थर्रा दिया।

शिवाजी महाराज के पूर्वज कौन थे? क्या वे सिसोदिया क्षत्रिय राजपूत थे?

हां, ऐतिहासिक और लोक परंपराओं के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज के पूर्वज 'बृजभान सिसोदिया' थे, जो मेवाड़ (राजस्थान) के एक प्रमुख क्षत्रिय राजपूत राजा थे।

🔱 बृजभान सिसोदिया जो “पीपा क्षत्रिय राजपूत” थे, संत शिरोमणि पीपा जी के अनुयायी और दीक्षित शिष्य थे।
🔱 वे उसी पवित्र वंश परंपरा के अंग थे जिसे आज “पीपा क्षत्रिय राजपूत” के नाम से जाना जाता है।
🔱 यह वंश शुद्ध रक्त वाले सिसोदिया क्षत्रिय राजपूतों का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी जड़ें युद्ध, धर्म और भक्ति में गहराई से जुड़ी हैं।
🔱 छत्रपति शिवाजी महाराज इसी वंश के गौरवशाली उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने स्वराज्य की स्थापना की और राजपूताना छापामार युद्ध नीति को और भी प्रखर रूप दिया।

🐅 छत्रपति शिवाजी महाराज:

जब भारत मुगल आक्रांताओं की मुट्ठी में जा चुका था, तब मराठा भूमि पर एक नया सूर्य उदित हुआ – छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने ठीक उसी छापामार युद्ध पद्धति को अपनाया, जिसे संत पीपा जी ने जन्म दिया था।

📜 ऐतिहासिक संकेत, लोक कथाएं और किवदंतियाँ इस ओर स्पष्ट इशारा करती हैं कि छत्रपति शिवाजी उन्हीं 52 दीक्षित क्षत्रिय राजाओं की वंश परंपरा से थे।

💠 पीपा क्षत्रिय राजपूत श्रीमान बृजभान सिसोदिया नामक मेवाड़ वंश से जुड़ी पीढ़ी ही आगे चलकर शिवाजी महाराज के कुल में समाहित हुई। यही नहीं, संत परंपरा और क्षत्रिय परंपरा का संगम, शिवाजी महाराज की रणनीति, नीति और संस्कृति में स्पष्ट दिखाई देता है।


शिवाजी महाराज: शुद्ध रक्त राजपूत, पीपा क्षत्रिय वंश के गौरव

आज जबकि कई ऐतिहासिक झूठों और राजनीतिक साजिशों के माध्यम से हमारी जड़ों को काटने का प्रयास हो रहा है, यह सत्य पुनः प्रमाणित होता है कि शिवाजी महाराज एक शुद्ध क्षत्रिय राजपूत थे, जिनकी वंशज पहचान श्रीमान बृजभान सिसोदिया पीपा क्षत्रिय राजपूत के गौरव से जुड़ी हुई है।

🗡️ उन्होंने न केवल युद्ध जीते, बल्कि हिंदवी स्वराज्य की परिकल्पना को भी साकार किया — और वह भी पीपा जी के परंपरा के छापामार युद्ध शौर्य से।


🔥 संदेश पीढ़ियों के लिए:

  • संत पीपा जी का शौर्य केवल भक्ति नहीं, एक रणनीति थी।
  • शिवाजी महाराज का स्वराज्य केवल राज्य नहीं, एक राजधर्म था।
  • और पीपा क्षत्रिय राजपूत होना केवल जाति नहीं, एक वंशीय उत्तरदायित्व और आत्मगौरव है।

जय संत पीपा जी!⚔️ जय छत्रपति शिवाजी!🛡️ जय पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज!🔱 जय राजपुताना!

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संत पीपा जी और पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज