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मृत्यु भोज नहीं, शिक्षा और समाजसेवा को दें प्राथमिकता – एक सुधार की पुकार

 

मृत्यु भोज जैसी कुप्रथाओं पर रोक – एक सामाजिक सुधार की ओर कदम

जय पीपा जी! जय माता सीता! जय राजपुताना!

आज का युग परिवर्तन का युग है। जहाँ पूरी दुनिया विज्ञान, शिक्षा और तरक्की की दिशा में आगे बढ़ रही है, वहीं हमारा पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज अब भी कुछ ऐसी कुप्रथाओं से जकड़ा हुआ है जो न केवल सामाजिक प्रगति में बाधा बन रही हैं बल्कि आर्थिक रूप से भी हमारे समाज के कमजोर वर्ग को तोड़ रही हैं। इन कुप्रथाओं में सबसे बड़ी और खर्चीली प्रथा है – "मृत्यु भोज" और "तेरहवीं भोज"

मृत्यु भोज – एक दिखावा या श्रद्धा?

राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में मृत्यु भोज की परंपरा अब विकराल रूप धारण कर चुकी है। एक मृत्यु के बाद मृतक के परिवार से यह अपेक्षा की जाती है कि वे समाज के 4000 से 5000 लोगों को भोज कराएं। इस भोज पर 5 से 7 लाख रुपये तक का खर्च आता है। इस अंधी परंपरा में शामिल होने के लिए एक गरीब परिवार को अक्सर अपनी जमीन, गहने और संपत्ति बेचनी पड़ती है

क्या यही है समाज का उद्देश्य? क्या हम किसी की मृत्यु पर इतना खर्च करके उसे सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं, या फिर दिखावे और सामाजिक दबाव का बोझ लाद रहे हैं?

सिर्फ 51 करीबी लोगों को बुलाएं – यही हो मर्यादा

हमारा आग्रह है कि पीपा क्षत्रिय समाज मृत्यु भोज जैसी परंपराओं को बंद करे। तेरहवीं के अवसर पर केवल 51 नजदीकी परिजनों और मित्रों को आमंत्रित किया जाए। इससे न केवल फिजूलखर्ची रुकेगी, बल्कि सामाजिक समानता और सहयोग की भावना भी बढ़ेगी,जो पैसा बचेगा उससे लडकियों और बच्चो की शिक्षा पर खर्च किया जाए, क्योकि जब समाज के बच्चे कल कलेक्टर, डॉक्टर इत्यादि बनेगे तो न सिर्फ समाज का मान बढेगा बल्कि उनको कही ज्यादा आर्थिक और सामाजिक लाभ होगा।

शिक्षा में निवेश करें – समाज को बनाएं सक्षम

यदि यही पैसा – लाखों रुपये – समाज के बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, और करियर पर लगाया जाए, तो हमारे समाज से IAS, IPS, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और उद्यमी निकलेंगे। समाज का गौरव बढ़ेगा और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ आत्मनिर्भर बनेंगी।

विवाह का सशक्त प्रस्ताव – "माता सीता सहचरी  विवाह"

हम समाज को एक और सार्थक सुझाव देते हैं – मृत्यु भोज के स्थान पर उस दिन सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाए, जिसमें कम से कम 10 विवाह अनिवार्य हों। इस विवाह को "माता सीता सहचरी  विवाह" नाम दिया जाए, जिससे एक सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान भी जुड़ सके।

इस प्रकार:"माता सीता सहचरी विवाह" होने से

  • 10 जोड़ो के 20 परिवारों का विवाह खर्च बचेगा

  • मृत्यु भोज की जगह समाजहित का कार्य होगा

  • समाज में सहयोग, सहानुभूति और नवचेतना फैलेगी

समाज का कर्तव्य है सुधार करना

समाज का मूल उद्देश्य होना चाहिए – एक-दूसरे का सहारा बनना, जीवन स्तर उठाना, और नई पीढ़ी को सक्षम बनाना। लेकिन आज मृत्यु भोज जैसी परंपराएं हमें गरीबी और दिखावे में झोंक रही हैं। यह मूर्खता की व्यवस्था अब बंद होनी चाहिए।

यदि यह प्रथा पूरी तरह बंद नहीं हो सकती, तो उसमें संशोधन अवश्य किया जाए – जैसे सीमित संख्या में आमंत्रण, सामूहिक विवाह, और मृतक की स्मृति में समाजसेवा का आयोजन।

आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें:

"अब मृत्यु भोज नहीं – शिक्षा, सेवा और सहयोग का यज्ञ करें!"
"समाज की असली श्रद्धांजलि – अगली पीढ़ी को सक्षम बनाना है!"

जय पीपा जी! जय माता सीता! जय राजपुताना!

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संत पीपा जी और पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज