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पीपाजी राजस्थान रा साहित्य अर भक्ति रा प्रेरणास्त्रोत



             खींची चौहान राजवंश में जलम्योड़ा संत पीपाजी रौ राजस्थानी भाषा, संत-साहित्य अर भक्तिमार्ग नै हरियल करण में घणो महत्त्वपूर्ण योगदान है। राजस्थान रा संतकवि अर जनचेतना रा जागरण करन वाळा समाज-सुधारक संत पीपाजी रौ जीवनचरित्र भारतबरस रै समाज सुधारकां खातर एक अद्भुत अर अनुपम उदाहरण है। 
            संत पीपाजी रौ जलम वि.सं. 1380 रै लगैटगै झालावाड़ जिले रै गागरोन दुर्ग में होणो मान्यौ जावै। खींची चौहान रजवाड़ा रा उत्तराधिकारी पीपाजी बाल्यकाल सूं ई आपरी तेजस्विता, साहस अर आध्यात्मिक झुकाव खातर विख्यात रहा। बचपन रौ नाम राजकुमार प्रतापसिंह हो। पिताजी रै परलोक सिधारण पाछै पीपाजी गागरोन रै राजगद्दी माथै बिराजमान होय'र राज्यकारज संभाळिया।
            पीपाजी बडो शूरवीर हा। इतिहासकार मुंहता नैणसी अर डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा रै अनुसार वां रै शासनकाल में घणा जुद्ध हुवै—टोडा अर गागरोन रा युद्ध खास महत्व राखै। जुद्ध रै वीभत्स दृश्यों अर रणभूमि में होणारी निस्सारता नै देख'र पीपाजी रै मन में वैराग्य जाग्यौ। एक वार उणां रै हाथां एक गर्भवती हिरणी रो शिकार हो गयो, अर उण रा बिचिया नै बिलखता देख'र पीपाजी रौ अंतरमन हिलग्यो। उणै क्षण सूं वां संसार सूं विमुख होय'र भगवत भक्ति नै अपनाय ली।    
            पीपाजी रै आत्मबोध अर वैराग्य नै वाणी रूप में देखां तौ वां रौ एक दोहा जग प्रसिद्ध है:
पीपा पाप न कीजियै, अलगौ रहीजै आप।
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप।।
वां रै वचन, वाणी अर जीवन व्यवहार मांय घणौ सहजतौ अर गहराई है। पीपाजी जीभ रै स्वाद खातर जीव-हत्या करन वाळां रै भी खुल्लमखुल्ला विरोधी रहा:
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण।
पीपा परतख देखलै, थाली मांय मसाण।।
            प्रारंभ में देवी दुर्गा री मूर्ति पूजा करन वाळा पीपाजी, पाछै स्वामी रामानंदजी रै संपर्क में आय'र निरगुण ब्रह्म भक्ति रै मार्ग माथै अग्रसर होया। काशी पूग'र वां स्वामी रामानंदजी सूं दीक्षा ली अर उणां रा शिष्य बनया।
            दीक्षा पाछै संत पीपा भगवत भक्ति, लोक कल्याण अर समाज सुधार मांय रत होया। भगवद्-साक्षात्कार रै पाछै, वां क्षत्रियों रै पतन देख'र मन में व्यथा जागी। क्षत्रिय जाति लूट-मार, हिंसा अर अत्याचार मांय लिप्त होरी रही। संत पीपाजी वां नै सच्चो मार्ग देखायो, तरवार त्याग'र सुई धारण करवाई, अर समाज में दाई-सिलाई जैवो शिष्ट कार्य अपनाय'र एक आदर्श जीवण रौ उदाहरण स्थापीत करायौ।
            आज संत पीपा रै करोड़ों अनुयायी भारत रै सगळा राज्यों में ही नीं, पर विदेशों में भी पाय जावै, जिकां नै 'पीपा क्षत्रिय राजपूत' कै'र गौरव सूं संबोधित करयां जावै। संत पीपाजी रै समस्त अनुयायी मूलत: क्षत्रिय राजपूत ही रहा, जिणां नै वां सच्चो धर्म अर सच्चो जीवण रौ बोध करायो। राजस्थान, मध्यप्रदेश (मालवा), गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा अर पंजाब में पीपापंथी अनुयायियां री संख्या विशेष रूप सूं बेसी है।
"संत पीपाजी रा वां क्षत्रिय राजपूत अनुयायी आज 'पीपा क्षत्रिय राजपूत' सूं जाण्या जावै।"
            वां री वाणी में सहजता, विरह भाव, आत्म-संवाद अर परमार्थ भाव मिलै। संत पीपा रो मारग ब्रह्म साक्षात्कार अर लोकहित मांय समर्पित रहा। वां हठवाद सूं परे, सत्याग्रह मांय रत संत रहा:
अहंकारी पावै नहीं, कितनौइ धरै समाध।
पीपा सहज पहूंचसी, साहिब कै घर साध।।
            वां री रचनावां में 153 साखियां, 45 पद, 2 चित्रावली लघु ग्रंथ, 1 ककहरा ग्रंथ, अर 1 "वर्ण विचार" ग्रंथ प्राप्त है। वां रै ग्रंथों मांय निरगुण भक्ति, ब्रह्म स्वरूप, नाम सुमरण, इंद्रिय निग्रह अर आत्मचिंतन रै गूढ़ भाव स्पष्ट रूप सूं मिलै।
            धार्मिक रूढ़िवादिता अर सामाजिक भेदभाव रा विरोध करन वाळा संत पीपाजी, उत्तर भारत रै भक्ति आंदोलन रा एक मजबूत स्तंभ रहा। कबीर, रैदास, रामानंद जैवां संतां री परंपरा मांय संत पीपा रौ नाम घणो ऊँचो अर प्रभावशाली है।
आज भी संत पीपाजी रै अनगिणत धार्मिक स्थान है, जिकां मांय प्रमुख है—
गागरोन दुर्ग स्थित मिंदर
पीपा री छत्री अर बाग
काली सिंध अर आहू रै संगम सूं जुड़ेल गुफा-मंदिर
द्वारका स्थित पीपावट
अमरोली (गुजरात) रै पीपावाव
काशी रौ पीपा कूप
समदड़ी (बाड़मेर), पीपाड़ (जोधपुर) इत्याद।
संत पीपाजी रौ जीवन आज भी एक जीवंत आदर्श है—धर्म, साधना, समाज सुधार अर लोक कल्याण रै संगम रूप मांय। उण रा आदर्श, विचार अर जीवन शैली आज भी करोड़ों पीपापंथी क्षत्रिय राजपूतान रा आत्मगौरव रौ आधार है
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