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सिंह-कंवर नाम से पीपा क्षत्रिय समाज की पहचान

 

पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज की गर्जना

"हमारी पहचान, हमारा गौरव, हमारी एकता!"

🚩 अब समय आ गया है — जागो, जुड़ो और गर्जना करो!
हम पीपा क्षत्रिय राजपूत हैं — संत पीपा जी महाराज की वाणी से सिंचित, चौहान वंश की खींची शाखा से जन्मे उस शूरवीर परंपरा के वंशज, जिन्होंने धर्म, समाज और संस्कृति के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।


🌟 1. नाम नहीं, हमारी पहचान है — सिंह और कंवर!

🔹 हर पुरुष के नाम के साथ “सिंह”, और हर बेटी के नाम के आगे “कंवर” — यही हमारी संस्कृति की पहचान है।
🔹 बच्चों के नामकरण से लेकर सरकारी दस्तावेजों तक, हर जगह यह परंपरा अनिवार्य बनाएं।
🔹 यह केवल एक नाम नहीं — यह हमारी शान, आत्मगौरव और संस्कृति की लौ है, जो हमारी पीढ़ियों को रोशनी देगी।

💥 "नाम में सिंह, पहचान में गर्जना!"


🏹 2. संबोधन से सजीव हो परंपरा!

🔸 बच्चों को कुंवर साहब कहें, बेटियों को बाईसा कहें —
🔸 भाईचारे में “सिंह” के साथ संबोधन करें — यह संबोधन नहीं, आत्मसम्मान का प्रतीक है।

🛡️ "सम्मान से उपजेगा संस्कार, संस्कार से जगेगा स्वाभिमान!"


💍 3. शादी – सिर्फ रस्म नहीं, संस्कृति की सजगता है!

🔖 हर शादी में…
✔️ शादी के कार्ड पर गर्व से लिखें — ‘पीपा क्षत्रिय राजपूत’
✔️ समाज के प्रतीक चिह्न के साथ विवाह स्थल सुसज्जित हो।
✔️ “क्षत्रिय रक्त, सिंह के सम, शौर्य हमारा, रण प्रचंडतम” — इस अद्भुत स्लोगन को स्थान दें।
✔️ बरातियों को भेंटस्वरूप पीपा जी एवं माता सीता की छवि वाला स्मृति-चिह्न दें।
✔️ PATKA PATTA से स्वागत करें — जो हमारी संस्कृति का प्रतीक हो।

🎉 "शादी में शौर्य की सजावट, संस्कृति की सौगात!"


🏆 4. यह केवल परंपरा नहीं – पहचान का पुनर्जागरण है!

पीपा जयंती की महारैली केवल एक आयोजन नहीं — यह हमारी सभ्यता, संस्कृति, और सामाजिक एकता की गर्जना है।
यह हमारे इतिहास की पुनर्पुष्टि और भविष्य की नींव है।

🌈 "हम सब एक हैं — एक संस्कृति, एक गौरव, एक ध्वज!"


🔥 5. कौन हैं हम? — संत पीपा जी महाराज के वंशज!

हम उस परंपरा के उत्तराधिकारी हैं जहाँ…

✳️ मांसाहार, मदिरापान, आडंबर का त्याग कर धर्म का दीप जलाया गया।
✳️ कर्मकांडों की बजाय सच्चे धर्म की राह दिखाई गई।
✳️ समाज में सुधार के लिए, स्वयं वैराग्य की राह अपनाई गई।

🙏 "वयं क्षत्रियाः, वयं धर्मरक्षकाः, वयं रणभूमेः सिंहाः, वयं पीपदासाः।"
🚩 "शौर्यम् आत्मबलं च राजपुतानां भूषणम।"


🗺️ 6. संत पीपा जी के शिष्य वंशज – हमारे गौरव का विस्तार!

सोलंकी, तंवर, परमार, गोहिल, दहिया, चौहान, भाटी, राठौड़, टांक, प्रतिहार, झाला, सिसोदिया, बड़गुजर, कच्छावा, चावड़ा, डाबी...
ये केवल वंश नहीं, हमारी संस्कृति की जड़ें हैं, जो राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, और हरियाणा तक फैली हैं।

🌟 "हर घर में पीपाजी, हर दिल में धर्म!"


📣 अब तुम्हारी बारी है!

🚩 उठो, समाज से जुड़ो
🚩 नाम में सिंह-कंवर जोड़ो
🚩 शादी, उत्सव और त्योहारों में परंपरा का दीप जलाओ
🚩 पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज की गर्जना बनो!

जय पीपा जी महाराज!
जय क्षत्रिय धर्म!
जय संस्कृति!




हर पीपा क्षत्रिय राजपूत के घर, गाड़ी और प्रतिष्ठान पर समाज के प्रतीक चिह्न और गौरवसूचक घोष- वाक्य  का उपयोग अनिवार्य रूप से करें — यही हमारी एकता, पहचान और संस्कृति की पहचान है।
🙏 "वयं क्षत्रियाः, वयं धर्मरक्षकाः, वयं रणभूमेः सिंहाः, वयं पीपदासाः।"


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