पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूत : ऐतिहासिक प्रमाण, वंश परंपरा और सामाजिक सच्चाई
🔶 परिचय
भारत की प्राचीन जातीय संरचना में राजपूत वंश का विशेष महत्व रहा है। क्षत्रिय राजपूतों ने सदैव अपने शौर्य, बलिदान और धर्मरक्षा के लिए इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है। इन गौरवशाली वंशों में एक विशिष्ट स्थान पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूत समाज का भी है, जिसका गौरवशाली इतिहास और प्रमाण आज भी प्रामाणिक अभिलेखों में सुरक्षित हैं। दुर्भाग्यवश, कालांतर में इस समाज के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैलाई गईं, जिन्हें ऐतिहासिक प्रमाणों के माध्यम से स्पष्ट करना आवश्यक है।
📖 ब्रिटिश अभिलेखों में प्रमाण
पीपावंशी क्षत्रिय राजपूत ही हैं — इतिहासकार इब्बेटसन के अभिलेखों और प्रमाणित दस्तावेज़ों से सिद्ध हो गया हैं :-
19वीं सदी में ब्रिटिश भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार, समाजशास्त्री और दार्शनिक सर डेंजिल चार्ल्स जेल्फ इब्बेटसन ने भारत में जातीय संरचना और जनगणना पर विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा कि 'दर्जी' शब्द केवल एक व्यवसाय का द्योतक है, न कि जाति का।
उनका कथन
Regard the term Darji as purely occupational.
अर्थात 'दरजी' शब्द केवल एक व्यवसाय है, न कि कोई जाति, वंश या धर्म। ब्रिटिश इतिहासकार इब्बेटसन ने विशेष रूप से ज़ोर देकर कहा कि 'दरजी' किसी भी सामाजिक या जन्मना पहचान का प्रतीक नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक पेशा है, जिसे समयानुसार किसी भी वर्ग का व्यक्ति अपना सकता है। अतः पीपावंशी क्षत्रिय राजपूतों को 'जातिगत दर्ज़ी' कहना ऐतिहासिक रूप से पूर्णतः गलत और अनुचित है।
इब्बेटसन ने अपने अभिलेखों में बताया कि पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूतों की उत्पत्ति खींची राजपूत वंशज संत पीपाजी से हुई। उन्होंने : अपनी रिपोर्ट में संत पीपाजी का भी उल्लेख किया है। वे खींची राजपूत वंश के थे, जिन्होंने संवत 1475 के आसपास सांसारिक जीवन त्याग कर भक्ति मार्ग अपनाया। उन्होंने अपने साथ जुड़े राजपूत सेवकों और अनुयायियों को दर्ज़ी का कार्य अपनाने के लिए प्रेरित किया। इब्बेटसन ने लिखा:
ब्रिटिश सरकार द्वारा संकलित अभिलेखों और इब्बेटसन की रिपोर्ट में यह स्पष्ट उल्लेख है कि पीपा वंशी वास्तव में क्षत्रिय राजपूत हैं। इनमें 'दर्जी' को केवल एक व्यवसाय माना गया है, न कि जाति। यह सामाजिक समावेशिता और पेशेगत स्वतंत्रता का ऐतिहासिक प्रमाण भी है।
हम सबका कर्तव्य है कि अपने गौरवशाली इतिहास और वंश परंपरा का संरक्षण करें। पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूत समाज भक्ति, वीरता और स्वाभिमान का प्रतीक है। किसी भी रूप में उन्हें जातिगत भेद या मिथ्या धारणाओं से जोड़ना सामाजिक अन्याय और ऐतिहासिक अपराध है।
📚इतिहासकार इब्बेटसन ने अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा-
"to have induced his Rajput servants and followers to adopt the profession of tailors."
इससे यह स्पष्ट होता है कि जो लोग दर्ज़ी का कार्य करने लगे, वे जन्मना 52 दीक्षित राजाओ के वंशज और प्रजा के रूप में क्षत्रिय राजपूत ही थे, जिन्होंने केवल पेशा बदला था — वंश या जाति नहीं।
पीपा वंशी राजपूतों की गौरवशाली वंश परंपरा
"The Pipa-Bansis take their name from Pipaji, a Khiehi Rajput who abandoned the secular world about the Samvat year 1475 and induced his Rajput servants and followers to adopt the profession of tailors."
पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूतों में कई प्रसिद्ध राजपूत कुल शामिल रहे हैं, जैसे — परिहार, पंवार, चौहान, सोलंकी, तुंवर, सिसोदिया, डाबी, भट्टी, टक, दैया, सिंखलिचा, माकवान, कछवाहा, और गहलोत। इससे स्पष्ट है कि यह समाज केवल एक व्यवसाय-प्रधान वर्ग नहीं, बल्कि राजपूत कुलों की गौरवशाली परंपरा का प्रतिनिधि है।
📖 एन्साइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन सरनेम्स में पुष्टि
इतिहासकार डॉ. शिबानी रॉय और एस. एच. रिज़वी ने भी अपनी प्रसिद्ध कृति 'Encyclopedia of Indian Surnames' में 'Ajarani' शीर्षक के अंतर्गत प्रमाणित किया है कि:
"पिपावंशी राजपूत विशुद्ध रक्तवंशीय क्षत्रिय हैं।"
यह प्रमाण न केवल ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को पुष्ट करता है, बल्कि सामाजिक रूप से भी इस वंश की गौरवशाली स्थिति को मान्यता देता है।
इतिहास और प्रामाणिक दस्तावेज़ इस बात को सिद्ध करते हैं कि ‘दर्जी’ शब्द केवल व्यवसाय को दर्शाता है, न कि किसी की जातिगत स्थिति को। पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूतों ने संत पीपाजी की प्रेरणा से समयानुसार यह पेशा अपनाया, लेकिन उनका जन्मना क्षत्रिय वंशज होना कभी नहीं बदला। अतः पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूतों को ‘जातिगत दर्ज़ी’ कहना न केवल ऐतिहासिक रूप से ग़लत है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अपमान भी है।
अनेक इतिहासकार और विद्वान लेखकों ने प्रमाणित किया है कि संत पीपा जी के सभी अनुयायी 52 दीक्षित क्षत्रिय राजपूत राजा और उनकी राजपूत प्रजा ही थीं। पीपा वंशी क्षत्रिय राजपूतों के गोत्र, रीति-रिवाज, विवाह पद्धति और परिधान आज भी विशुद्ध राजपुताना परंपरा के अनुसार ही हैं। इसका स्पष्ट प्रमाण है कि यह समाज जन्मना क्षत्रिय राजपूत वंशज है। पेशेगत परिवर्तन ने उनके वंश और गौरव को कभी नहीं बदला। आज भी यह समाज उसी क्षत्रिय आन-बान-शान के साथ जीवंत है।
📣 समाज और राष्ट्र के प्रति अपील
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ब्रिटिश रिपोर्ट और मूल दस्तावेज़ उपलब्ध।
जय संत पीपा जी! जय राजपुताना! जय माता सीता!
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