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संत पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज में नाम और संबोधन परंपराओं का महत्व

 क्षत्रिय रक्त, सिंह के सम।    

शौर्य हमारा, रण प्रचंडतम।।    

 गौ, गीता, गढ़, गुरुदेव।
 क्षत्रिय धर्म हमारा देव।।
प्रिय समाज बन्धु, 
              पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज की पहचान, गौरव और एकता के लिए नाम एवं संबोधन से जुड़ी महत्वपूर्ण पहल,समाज की संस्कृति, गौरव और एकता को और अधिकसशक्त बनाने हेतु निम्नलिखित परंपराओं को अपनाना आवश्यक है:- 
1 अपने और अपने बच्चो के नाम के साथ सिंह, कुंवर व कंवर का अनिवार्य उपयोग करें।
            सरकारी रिकॉर्ड अपडेट: समाज के सभी सदस्य सुनिश्चित करें कि सरकारी दस्तावेजों में लड़कों के नाम के अंत में सिंह  और लड़कियों के नाम के आगे कंवर जोड़ा जाए, नवजात शिशुओं के नामकरण में भी यह परंपरा अनिवार्य रूप से अपनाई जाए।
            यह केवल नाम का परिवर्तन नहीं, बल्कि हमारी पहचान, गौरव और एकता का प्रतीक है। इसे पूरे समाज में एक परंपरा के रूप में स्थापित करें और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी इससे जोड़ें।
         
संत पीपा जी के आदर्शो को अपनाते हुए, परंपरागत संबोधन एवं सम्मान बनाए रखें
            बच्चों को कुंवर और लड़कियों को बाईसा जैसे सम्मानजनक नामों से संबोधित करें, जिससे हमारी गौरवशाली परंपरा जीवंत बनी रहे।
            समाज के सभी लोग अपने पीपा क्षत्रिय राजपूत भाइयों को सिंह लगाकर ही संबोधित करें, जिससे हमारी संस्कृति और एकता को सशक्त रूप से स्थापित किया जा सके।
2 शादी में पीपा क्षत्रिय राजपूत वाला बैनर लगाये, शादी के कार्ड में पीपा क्षत्रिय राजपूत जरुर लिखाये, समाज के प्रतिक चिन्ह का उपयोग भी शादी कार्ड में करे क्षत्रिय रक्त, सिंह के सम, शौर्य हमारा, रण प्रचंडतम“ यह स्लोगन भी लगाये। शादी में बरातियो को यदि उपहार दिया जा रहा हैं तो समाज का प्रतिक चिन्ह वाले पीपा जी एवं माता सीता कि तस्वीर देवे, बारात आने पर, उनका स्वागत पीपा जी एव माता सीता की तस्वीर एवं समाज के प्रतीक चिन्ह वाले PATKA PATTA से करे।   
संस्कृति एवं पहचान: यह पहल समाज की विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई हैं यह  ।पीपा वंशी परम्परा ही हमारा गौरव् हैं ।            
            ।। शौर्यम् आत्मबलं च राजपुतानां भूषणम ।।
।। वयं क्षत्रियाः, वयं धर्मरक्षकाः, वयं रणभूमेः सिंहाः, वयं पीपदासाः।।
      ।। धर्मो रक्षति रक्षितः, वयं धर्मयोद्धाः पीपदासाः।।








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संत पीपा जी और पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज