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संत पीपा जी की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में

गुरु नानक देव जी ने संत पीपा जी की एक महत्वपूर्ण रचना उनके पोते अनंतदास के माध्यम से टोडा नगर में प्राप्त की थी। इस तथ्य का प्रमाण अनंतदास द्वारा रचित ग्रंथ "परचई" के पच्चीसवें प्रसंग में स्पष्ट रूप से मिलता है। संत पीपाजी की यह रचना भक्ति भाव और निर्गुण भक्ति के तत्वों से परिपूर्ण है। इसे गुरु अर्जुन देव जी ने इसकी आध्यात्मिक महत्ता को देखते हुए "गुरु ग्रंथ साहिब" में संकलित किया। आज यह रचना "गुरु ग्रंथ साहिब" में पृष्ठ संख्या 695 पर पाई जाती है और यह सिख धर्म तथा भारतीय भक्ति परंपरा के बीच गहरे आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक मानी जाती है।

1. शबद का मूल पाठ (गुरमुखी में):

ਪੀਪਾ ॥
ਕਾਯਉ ਦੇਵਾ ਕਾਇਅਉ ਦੇਵਲ ਕਾਇਅਉ ਜੰਗਮ ਜਾਤੀ ॥
ਕਾਇਅਉ ਧੂਪ ਦੀਪ ਨਈਬੇਦਾ ਕਾਇਅਉ ਪੂਜਉ ਪਾਤੀ ॥੧॥
ਕਾਇਆ ਬਹੁ ਖੰਡ ਖੋਜਤੇ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥
ਨਾ ਕਛੁ ਆਇਬੋ ਨਾ ਕਛੁ ਜਾਇਬੋ ਰਾਮ ਕੀ ਦੁਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ਜੋ ਬ੍ਰਹਮੰਡੇ ਸੋਈ ਪਿੰਡੇ ਜੋ ਖੋਜੈ ਸੋ ਪਾਵੈ ॥
ਪੀਪਾ ਪ੍ਰਣਵੈ ਪਰਮ ਤਤੁ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਹੋਇ ਲਖਾਵੈ ॥੨॥੩॥


2. देवनागरी लिपि में:

पीपा ॥
कायउ देवा, कायउ देवल, कायउ जंगम जाति।
कायउ धूप, दीप, नैवेद्य, कायउ पूजउ पाती ॥१॥
काया बहु खंड खोजते नव निधि पाई।
ना कछु आइबो, ना कछु जाइबो, राम की दुहाई ॥१॥ रहाउ ॥
जो ब्रह्मांडे सोई पिंडे, जो खोजै सो पावै।
पीपा प्रणवै, परम तत्व है, सतगुरु होइ लखावै ॥२॥३॥


3. हिंदी अनुवाद:

पीपा जी कहते हैं:
यह शरीर ही देवता है, यही मंदिर है, यही जंगम साधु जैसी जाति है।
इसी शरीर को मैं धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करता हूँ। यही पत्ती चढ़ाता हूँ।
जो इस शरीर रूपी नगर में भीतर की खोज करता है, वह नव-निधियों को प्राप्त करता है।
न कुछ बाहर से लाना है, न कहीं जाना है — मैं राम का ही स्मरण करता हूँ।
(रहाउ — यही मुख्य भाव है)
जो ब्रह्मांड में है, वही इस शरीर में भी है।
जो इसे खोजता है, वह पा लेता है।
पीपा कहते हैं, परम तत्व यही है, जिसे सच्चा गुरु प्रकट करता है।


4. शबद का भावार्थ:

भगत पीपा जी इस शबद में यह समझा रहे हैं कि परमात्मा की पूजा बाहरी रूप से मूर्ति, मंदिर या स्थानों में करने की बजाय, अपने ही शरीर के भीतर ईश्वर को खोजने का प्रयास करना चाहिए
शरीर ही असली देवता है — इस शरीर में ही आत्मा और परमात्मा दोनों का निवास है।
जो साधक आत्मनिरीक्षण करता है, वह नव निधियाँ (आध्यात्मिक खजाने) प्राप्त करता है।
ना बाहर जाना है, ना कुछ बाहर से लाना है — बस राम का स्मरण और आत्मज्ञान ही असली पूजा है।
यह "जो ब्रह्मांड में है, वो शरीर में भी है" — इस सत्य को जानकर ही परम तत्व की प्राप्ति होती है।










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