Header Banner

संत पीपाजी द्वारा पीपाड़ सिटी की स्थापना और आध्यात्मिक योगदान





            राजस्थान की पावन धरती पर बसे हर नगर और गांव का नाम अपने आप में एक कहानी समेटे हुए होता है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगर है पिपाड़, जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है। बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है – “ पीपाड़ नाम कैसे पड़ा?” इस लेख में हम आपको पीपाड़ शहर के नाम की उत्पत्ति और इसके पीछे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में विस्तार से बताएंगे।

पीपाड़ शहर की स्थापना

             एक महान खींची वंशिय, चौहान क्षत्रिय राजपूत राजा संत शिरोमणि पीपाजी महाराज  ने पीपाड़ की स्थापना की थी.
            पीपाड़ नाम का मूल संबंध  महान क्षत्रिय राजपूत राजा और संत पीपाजी महाराज से हैं , उनका जन्म गढ़ गागरोन ,झालावाड़ में एक शक्तिशाली क्षत्रिय राजपूत शासक कुल में हुआ था। वे चौहान वंश के एक प्रतापी राजा थे, उनका नाम प्रताप सिंह चौहान था, बाद में संन्यास लेकर संत पीपा जी नाम से विख्यात हुये, राजस्थान में लोगों को आध्यात्मिक का उपदेश देते हुए जोधपुर के इस पीपाड़ स्थान पर आए, पीपाड़ के एक पीपड़ के पेड़ के नीचे पीपाजी महाराज ने तपस्या की थीं, इस स्थान से उन्होंने हजार लोगों को आध्यात्मिकता का उपदेश दिया था। 

            उस समय इस क्षेत्र को पिपाड़गढ़ के नाम से जाना जाता था।
पीपाजी महाराज केवल एक राजा नहीं थे, बल्कि वे एक महान संत और भक्त भी थे। उन्होंने सांसारिक मोह-माया और राजगद्दी को त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग को अपनाया। वे भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत माने जाते हैं और उनके उपदेशों और जीवनशैली का गहरा प्रभाव समाज पर पड़ा। उनके करोड़ों अनुयाई आज भी पीपा क्षत्रिय राजपूत कहलाए जाते हैं।

            ऐसा माना जाता है कि इस नगर की स्थापना स्वयं संत पीपाजी ने की थी, और आज भी यह नगर संत पीपाजी के मार्ग पर चलकर आध्यात्मिकता की राह पर अग्रसर है। पीपाड़ केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।

नाम की उत्पत्ति

शहर का नाम पहले पिपाड़गढ़ था – जो पीपाजी के नाम पर रखा गया था। समय के साथ “गढ़” शब्द हट गया और यह स्थान “पीपाड़” कहलाने लगा। यह नाम पीपाजी की स्मृति और उनके योगदान का प्रतीक है, बाद में यह पीपाड़ सिटी बन गया।

पीपाजी की भक्ति परंपरा
        पीपाजी महाराज के अनुयायी आज भी राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बड़ी श्रद्धा से उन्हें पूजते हैं। उनके द्वारा दिखाया गया भक्ति और त्याग का मार्ग आज भी लोगों को प्रेरित करता है। पिपाजी को संत कबीर के समकालीन माना जाता है, और कई संतों ने उनके जीवन और उपदेशों से प्रेरणा ली है।

वर्तमान में पीपाड़

            आज का पीपाड़ एक उभरता हुआ नगर है, जिसमें ऐतिहासिक विरासत के साथ-साथ आधुनिकता की झलक भी देखने को मिलती है। यहाँ कई मंदिर, धार्मिक स्थल और सांस्कृतिक धरोहरें मौजूद हैं जो इस नगर की गरिमा को और भी बढ़ाते हैं।
            पीपाड़ नाम केवल एक शहर का नाम नहीं है, बल्कि यह एक महान संत राजा की भक्ति, त्याग और आध्यात्मिकता की गूंज है। यह नगर आज भी संत पीपाजी की शिक्षाओं और सिद्धांतों पर चलकर धर्म, सेवा और आत्मिक शांति का संदेश फैला रहा हैं।

संत पीपा जी की दिव्य वाणी का प्रभाव

        कहा जाता है कि जब संत पीपा जी उपदेश देने बैठते थे, तो केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता, यक्ष, गंधर्व, नाग और अन्य दिव्य प्राणी भी उनके वचन सुनने के लिए एकत्र होते थे। उनकी वाणी में ऐसा अमृत था, जो आत्मा को शुद्ध कर देता, मोह-माया की जंजीरों को तोड़ देता, और परम सत्य की ओर ले जाता।

            जब वे भगवद-भक्ति, वैराग्य और आत्मज्ञान की बातें करते, तो स्वयं देवता भी अपने लोकों को छोड़कर उनकी शरण में आते। यक्षों की उत्सुकता, गंधर्वों की वीणाओं की मधुरता, और नागों की शांति—सभी मिलकर उस दिव्य सभा को स्वर्गिक बना देते।

            वह कोई साधारण संत नहीं थे, बल्कि एक ऐसे आत्मज्ञानी महापुरुष थे जिनकी आत्मा में स्वयं भगवान का वास था। उनकी वाणी से निकले हर शब्द, वेदों और उपनिषदों की गूढ़ बातों को सहजता से समझा देता था।

            जहाँ संत पीपा जी का प्रवचन होता, वहाँ की भूमि पावन हो जाती। वृक्षों की पत्तियाँ मंद-मंद हिलतीं, मानो वे भी उनके उपदेशों की सराहना कर रही हों। पक्षी भी अपने कलरव को रोककर उस दिव्य ज्ञान को सुनने लगते।

        सचमुच, संत पीपा जी का उपदेश केवल शब्द नहीं, एक अलौकिक अनुभव था, जो आत्मा को मुक्त कर दे।


संत पीपाजी ने बसाया पिपाड़ नगर,
जहाँ गूंजे भक्ति, प्रेम का सागर।

रेत में फूले श्रद्धा के फूल,
धरती बनी जैसे तीर्थ अनुकूल।

उनके नाम से पिपाड़ पहचाना जाए,
सदियों तक उनका यश गाया जाए।

पीपल की छांव में संत ने ध्यान लगाया,
तप की अग्नि में जीवन को तपाया।

राजपाट छोड़ा, भक्ति का पथ अपनाया,
जग को सत्य और प्रेम का भाव सिखाया।

पश्चिम रज में जब गूंजा उनका नाम,
हर ओर फैला अध्यात्म का महान धाम।

पिपाड़ नगर बसाया प्रेम और शांति से,
भक्ति की गंगा बहाई हर दिशा से।

कठिन तपस्या, त्याग की मिसाल बने,
संत पीपा सबके दिलों में लाल बने।

धर्म, ज्ञान और सेवा की जोत जलाई,
राजस्थान की माटी को पावन बनाई।

आज भी गूंजता है उनका यशगान,
  पीपा क्षत्रिय राजपूत करते हैं उनका सम्मान।

पीपाड़ की गलियाँ हैं भक्ति से भरी,
हर कोना जैसे साधुता से सजी।

धूप हो या रेत, मन नहीं डिगता,
संत पीपा का नाम हर दिल में दिखता।

सदियों बीतीं पर जोत नहीं मिटी,
पिपाड़ आज भी है अध्यात्म की सिटी।




 #santpipa #pipaKshtriya #piparajput #pipakshtriyarajput #pipakshtriyasamaj #piparajputhistory

#SantPipaJi #PipadHistory #RajputSaints #RajasthanCulture


पिपाड़ नाम कैसे पड़ा

संत पिपाजी महाराज

पिपाड़ का इतिहास

पिपाड़ राजस्थान

Pipad city history

Rajput Sant Pipa Ji

Spiritual towns in Rajasthan

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

संत पीपा जी और पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज