संत शिरोमणि पीपा जी, जो स्वयं एक क्षत्रिय राजपूत राजा थे, ने न केवल आध्यात्मिक जगत में बल्कि युद्ध नीति में भी महान योगदान दिया।
उन्होंने ही "छापामार युद्ध" नामक गुरिल्ला युद्ध शैली की शुरुआत की, जो भारत के इतिहास में स्वाभिमान और संघर्ष का प्रतीक बन गई।
संत पीपा जी ने अपने जीवन में तीन महायुद्ध लड़े।
52 राजा संत पीपा जी से प्रेरित होकर धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए संगठित हुए थे एवं आध्यात्मिकता का मार्ग ग्रहण किया था, आज उनके वंशज शुद्द रक्त राजपूत
"पीपा क्षत्रिय राजपूत"
नाम से जाते जाते हैं ।
यही युद्ध शैली और वीरता की परंपरा महाराणा सांगा से होते हुए , आगे चलकर महाराणा प्रताप तक पहुँची, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ मेवाड़ की मिट्टी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
छापामार युद्ध की यही परंपरा छत्रपति शिवाजी महाराज तक पहुँची, जिन्होंने इसे और अधिक प्रभावशाली रूप दिया और मुगल सत्ता को चुनौती दी।
किवदंतियों और ऐतिहासिक संकेतों के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज उन्हीं 52 दीक्षित क्षत्रिय राजाओं की वंशावली से संबंधित थे, जिन्हें संत पीपा जी ने मार्गदर्शन और दीक्षा दी थी।
इस प्रकार यह प्रमाणित होता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज एक शुद्ध क्षत्रिय राजपूत थे, जिनकी जड़ें पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज से जुड़ी हुई थीं।
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