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क्षत्रिय वर्ण, वैश्य कौशल, फिर कमजोरी का नाम क्यों?

                    इस लेख में पीपा क्षत्रिय राजपूत समुदाय की जातीय पहचान, दरजी शब्द के प्रभाव, और सामाजिक प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना की आवश्यकता पर चर्चा की गई है

संत पीपा जी  का जन्म एक क्षत्रिय राजपूत परिवार में हुआ था। वे राजवंशीय परंपराओं से जुड़े थे और वे एक कुशल वीर एवं  योद्धा रहे। राजकाज और युद्धकला में दक्ष होने के बावजूद, वे आध्यात्मिक पथ की ओर अग्रसर हुए।

                संत पीपा ने सांसारिक मोह त्यागकर भक्ति मार्ग को अपनाया और समाज में समानता व धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया। वे व्यापारिक कौशल में भी निपुण थे, इसलिए अपने सभी अनुयाइयो को वैश्य कर्मो में  लगाया।

                    परंतु समय के साथ, उनकी पहचान को क्षीण कर दिया गया। उनका नाम दरजी जाति से जोड़ा गया, जबकि उनकी क्षत्रिय और वैश्य परंपराओं की उपेक्षा की गई।

                    इतिहास साक्षी है कि संत पीपा क्षत्रिय राजपूत योद्धा रहे हैं। संत पीपा जी के वंशज एवं अनुयाइयो ने वैश्यता एवं आध्यात्मिकता की भूमिका को भी पूरी ईमानदारी से निभाया। आज भी पीपा क्षत्रिय राजपूतों ने अपनी आध्यात्मिक सोच और ईमानदारी के साथ वैश्य कर्मों से पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया हुवा है।

                    पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज के लोगों ने दुनिया को Parle-G, Maaza, Bisleri, Thumbs Up जैसे बहुमूल्य जैसे ब्रांड  दिए हैं। जोधपुरी कोट, शेरवानी आदि से देश को संवारने में योगदान दिया है। फिर भी, समाज में आज भी उन्हें शूद्रता का व्यवहार क्यों झेलना पड़ता है?

                    जबकि बाबा साहेब अंबेडकर ने शूद्र कहे जाने वालों को विशेष संरक्षण और भारी आरक्षण प्रदान किया, लेकिन पीपा क्षत्रिय राजपूत जो ऐतिहासिक रूप से न केवल क्षत्रिय रहे, बल्कि व्यापार और आध्यात्मिकता को भी अपनाया—उन्हें दरजी कहा जाने से न तो क्षत्रियों का सम्मान मिलता है, न ही व्यापारियों का अधिकार और न ही शूद्रों के लिए निर्धारित आरक्षण का कोई लाभ।

                    यह प्रश्न उठता है कि जो व्यक्ति राजवंश का उत्तराधिकारी था, व्यापार कौशल में निपुण था, उसे केवल एक सीमित जातिगत पहचान तक क्यों सीमित कर दिया गया? क्या यह समाज की मानसिकता थी या ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा?

                    इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है, ताकि संत पीपा की वास्तविक पहचान और उनके योगदान को उचित सम्मान मिल सके।

                    समाज में सम्मान और गौरव प्राप्त करने के लिए हमें अपनी वास्तविक जातीय पहचान को पुनः स्थापित करना होगा। पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज होनहार है और व्यापार व नौकरी में कुशलता रखता है।

                    अब समय आ गया है कि हम अपनी मूल पीपा क्षत्रिय राजपूत पहचान को अपनाकर अपने स्वाभिमान को पुनः प्राप्त करें। इससे न केवल हमारा सामाजिक और आर्थिक विकास होगा, बल्कि हमारी अगली पीढ़ी भी गर्व से अपनी विरासत को स्वीकार करेगी। एकजुट होकर हमें अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करना होगा।

भूमिका:

                समाज में दरजी शब्द का उपयोग प्रायः सिलाई कार्य से जुड़े व्यक्तियों के लिए किया जाता है। साजिस के तहत  इस शब्द का प्रयोग कई बार पीपा क्षत्रिय राजपूत समुदाय के लिए भी किया गया है, जिससे उनकी वास्तविक पहचान और इतिहास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

दरजी  शब्द की उत्पत्ति और ऐतिहासिक संदर्भ:

                दरजी शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के Darzi से हुई है, जिसका अर्थ सिलाई करना होता है।यह मूल रूप से सिलाई कार्य करने वालों के लिए प्रयुक्त होता था, लेकिन साजिश के तहत इसे पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज पर थोप दिया गया। इनका उद्देश्य समाज को उनके गौरवपूर्ण इतिहास से अलग करना था, और दुर्भाग्यवश, साजिशकर्ता इसमें काफी हद तक सफल भी हुए।

                देशभर में दरजी शब्द के अंतर्गत 50़ से अधिक जातियाँ आती हैं और 11 करोड़ से अधिक लोग इस नाम से पहचाने जाते हैं। इस व्यापकता के कारण लाखों पीपा क्षत्रिय राजपूत, जातीय अस्पष्टता के कारण अपनी पहचान खो चुके हैं और अन्य जातियों में सम्मिलित हो गए हैं।

                आज भी कई पीपा क्षत्रिय राजपूत अपनी मूल जातीय पहचान से अनजान हैं। राष्ट्रीय जनगणना में, हमारी वास्तविक गणना नहीं हो पाती, क्योंकि दरजी  शब्द हमारे लिए जातीय अस्पष्टता का कारण बन गया है।

पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा पर प्रभाव:

            समाज की प्रगति और सम्मान के लिए,दरजी  शब्द का परित्याग आवश्यक है। इसके स्थान पर, पीपा क्षत्रिय राजपूत जैसे सटीक और सम्मानजनक शब्दों का उपयोग किया जाना चाहिए। यह परिवर्तन न केवल समुदाय की वास्तविक पहचान को पुनर्स्थापित करेगा, बल्कि उनकी सामाजिक और व्यावसायिक प्रतिष्ठा को भी सुदृढ़ करेगा।

            सरकारी नौकरियों या व्यावसायिक क्षेत्रों में, जब किसी अधिकारी या कर्मचारी को दरजी के रूप में पहचाना जाता है, तो उनकी क्षमताओं और प्रतिष्ठा को कमतर आंका जाता है। यह शब्द उनके क्षत्रिय इतिहास और सामाजिक प्रतिष्ठा को नजरअंदाज करता है, जिससे वे अन्य समुदायों द्वारा दबाव और षड्यंत्र का सामना करते हैं।

              सरकारी नौकरी में, चाहे कर्मचारी कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो, जब पता चलता है कि वह दरजी  जाति से है, तो बड़े अधिकारी और राजनेता उसे दबाने की कोशिश करते हैं। अक्सर यह सुनने को मिलता है, अरे, यह तो दरजी है, कमजोर जाति से है, हमारा क्या बिगाड़ लेगा?

                जो लोग प्रगति करना चाहते हैं या उच्च स्तर तक पहुँच जाते हैं, वे दरजी  कहलाना पसंद नहीं करते और अपनी जातीय पहचान त्याग देते हैं। यह प्रवृत्ति समुदाय की एकता और पहचान के लिए हानिकारक सिद्ध होती है। हमारा इतिहास राजपूताना की गरिमा और वीरता से भरा है। पीपा क्षत्रिय राजपूत समुदाय का इस गौरवशाली इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे दरजी  शब्द के उपयोग से अनदेखा किया गया है। 

                वास्तव में, दरजी  शब्द मूल रूप से सिलाई कार्य करने वाली जातियों के लिए प्रयुक्त होता था, जो समाज में कमजोर और दबे-कुचले माने जाते हैं। सरकारी नौकरी हो या व्यापार, यदि कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है, तो जातीय कमजोरी के कारण उसके विरुद्ध षड्यंत्र किए जाते हैं। लोग उसे कमजोर समझकर दबाने की कोशिश करते हैं।

                        सामान्य परिस्थितियों में दर्जी  शब्द सामान्य लग सकता है, लेकिन जब आप ऊँचाइयों पर पहुँचते हैं, तो यह नाम आपकी पहचान को बाधित करने लगता है। लोग सोचते हैं , दरजी है, इसकी इतनी औकात नहीं कि हमारा मुकाबला कर सके। 

                देश में 11 करोड़ से अधिक लोग दरजी  जाति से हैं, लेकिन सामने वाले को यह समझाने में कि आप कमजोर नहीं, बल्कि सक्षम हैं, बहुत देर हो जाती है। तब तक, वह आपका बहुत नुकसान कर चुका होता है, जिसकी भरपाई संभव नहीं होती।

रमेश चौहान जी, जातीय पहचान और सफलता का संबंध

                रमेश चैहान जी, जिन्होंने Parle G, Maaza, Bislery, ThumsUp जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ बनाई, यदि वे स्वयं को दरजी कहलाते, तो शायद वे यह ब्रांड कभी नहीं बना पाते। दरजी  शब्द आज कमजोरी का प्रतीक बन चुका है, और प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ उन्हें राजनीतिक रूप से दबा देतीं व षड्यंत्र करतीं।

                उन्होंने राजपूत पहचान को अपनाया, जिससे उन्हें सामाजिक और व्यावसायिक सहयोग मिला। यदि वे दरजी  पहचान से जुड़े रहते, तो जातीय समर्थन के अभाव में उनका सफर कठिन हो जाता। हर समझदार व्यक्ति अपने परिवार और व्यापार की सुरक्षा के लिए दरजी जाति से दूरी बनाएगा, क्योंकि यह राजनीतिक षड्यंत्रों का शिकार बना सकता है।

                जो लोग प्रगति करना चाहते हैं, वे दरजी  कहलाना पसंद नहीं करते और जातीय पहचान को त्याग देते हैं। यह प्रवृत्ति पीपा क्षत्रिय राजपूत समुदाय की एकता और पहचान के लिए हानिकारक है। इसलिए, हमें अपनी गौरवशाली पीपा क्षत्रिय राजपूत पहचान को पुनः स्थापित करना होगा।

रमेश चौहान: क्षत्रिय कुल का गौरव

🔥 क्षत्रिय कुल के तेज से निखरे, नाम जिन्होंने रौशन किया।
💧मेहनत, साहस, बुद्धि के बल पर, व्यापार की नई राह बनाई

🥤 थम्स अप, माज़ा संग पारले जी, हर घर में पहचान बनी।
💪 मेहनत, हिम्मत, साहस लेकर, कारोबार की जान बनी।

🏆 बिज़नेस की दुनिया में आए, नए सपनों की राह बुनी।
🚀 राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में, अपनी भी आहुति चुनी।

🙏 रमेश चौहान की गाथा गाएँ, क्षत्रिय कुल का नाम बढ़ाएँ।
🇮🇳 हिंदुस्तान की माटी के वीर, यश का दीप जलाएँ!

🔥 जय क्षत्रिय, जय उद्यमिता, जय भारत! 🚀

बाबासाहेब अंबेडकर का उदाहरण:

            एक समय था जब दलित लोग अपने पीछे मोरपंख बाँधकर चलते थे ताकि उनके पदचिह्न मोरपंख से मिट जाएँ, जिससे कोई भी सवर्ण उनके पदचिह्न पर अपना पद रखकर अपवित्र न हो जाए। आज पीपा क्षत्रिय राजपूतो के सामने भी यही स्थिति है। यदि आगे बढ़ना है, तो साजिस के तहत दिए गए दरजी शब्द को मिटाकर अपनी मूल जाति पीपा क्षत्रिय राजपूत को जातीय नाम देना ही होगा, नहीं तो हर कोई अपने पीछे मोरपंख लगा देगा ताकि आगे बढ़ने पर दरजी नाम मोरपंख से मिट जाए, पीछे वाले को पता ही नहीं चले कि यह किस जाति से है, ताकि कोई भी उसे कमजोर जाति का न समझे। 

पीपा क्षत्रिय राजपूतों के संघर्ष और पहचान का प्रश्न 

            मारवाड़ और देश के कई अन्य क्षेत्रों में कुछ प्रभावशाली जातियाँ केवल इस कारण से पीपा क्षत्रिय राजपूतों की जमीन-जायदाद हड़पने का प्रयास करती हैं क्योंकि वे दरजी  कहलाते हैं। वे यह सोचते हैं कि यह दरजी जाति हमारा क्या बिगाड़ लेगी, इसकी औकात को हम जानते हैं। यह केवल अत्याचारं की एक झलक भर है, असली दर्दनाक कहानियाँ तो हम सुन भी नहीं सकते, वो दर्दभरी कहानिया ह्रदय विदारक हैं ,यह सब इसलिए हो रहा हैं ,  क्योंकि हमने अपने गौरवशाली इतिहास को भुला दिया है। 

अब हमें तय करना होगा कि हमारा संघर्ष किसके लिए है - अपनी आने वाली पीढ़ी के सम्मान और उज्जवल             भविष्य के लिए या फिर एक दबे-कुचले जीवन को स्वीकार करने के लिए? दलित समाज ने बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में अपने अधिकार प्राप्त कर लिए, उन्हें संविधान में विशेष अधिकार मिले, और आज वे दरजी समुदाय से 100 गुना आगे निकल चुके हैं। हमारे पास कोई भी बाबासाहेब अंबेडकर नहीं हैं हमें मिलकर एक होकर अपनी वास्तविक पहचान को पुनः स्थापित करने के साथ समाज को सशक्त बनाना होगा। 

            सौभाग्य से, हमारे पास संत पीपाजी का आशीर्वाद है, जिससे हम गर्व से अपनी पहचान पीपा क्षत्रिय राजपूत के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। यदि हम वास्तव में वे मूल दर्जी होते जिनका कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तो हमारी स्थिति और भी दयनीय होती। यदि आज हम अपनी जातीय पहचान के लिए संघर्ष नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ी भूल जाएगी कि हम क्षत्रिय राजपूत हैं। तब वे अन्याय और अत्याचार को ही अपनी नियति मान लेंगे। इसलिए, हमें अपनी वास्तविक पहचान को पुनः स्थापित करना होगा। 

जातिगत पहचान का महत्व:

             भारत में जातिगत पहचान व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान को गहराई से प्रभावित करती है। जब भी कोई व्यक्ति किसी से मिलता है, तो अक्सर उसकी जाति पूछी जाती है ताकि उसके प्रति व्यवहार और सम्मान का स्तर तय किया जा सके। यह प्रथा आज भी समाज में गहराई से व्याप्त है।

                चाहे आप कितने भी बड़े अधिकारी हों या सफल व्यापारी, यदि जाति पूछने पर आप दरजी  बताते हैं, तो समाज में कई बार अपमानजनक प्रतिक्रियाएं सुनने को मिलती हैं, जैसे-

'अच्छा, दरजी हो तुम?'

"यह तो बेचारा दरजी है।"

"देख  लेंगे इसको, दरजी ही तो है।"

"दरजी की इतनी औकात?"

"दरजी काम मना कर दे, उसकी मौत आई है क्या?"

                हालांकि, भाषा की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए इससे अधिक कठोर शब्दों का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन वास्तविकता इससे भी अधिक गंभीर होती है, जो किसी भी व्यक्ति की आत्मा को झकझोर सकती है।

वहीं,यदि कोई सफाईकर्मी भी, जाति पूछने पर अपने आप को पीपा  क्षत्रिय राजपूत कहे, तो समाज का नजरिया पूरी तरह बदल जाता है। राजस्थान में लोग सम्मान से ठाकुर साहब,अनदाता,जागीरदार साहब, बन्ना जी,हुक्कुम ,कंवर सा गाँव धणी जैसे समानजनक संबोधन देते हैं। गुजरात में सम्मान के साथ बापू  और दरबार  कहा जाता है। इसी प्रकार, भारत के अन्य राज्यों में भी समाज द्वारा समान आदर और प्रतिष्ठा प्रदान की जाती है।

            अब यह निर्णय हमें लेना है कि हमारी आने वाली पीढ़ी सम्मान से भरपूर जीवन जिए या अपमान और तिरस्कार का दंश झेले। हमें अपनी वास्तविक जातीय पहचान को अपनाकर समाज में अपने गौरव और सम्मान को पुनःस्थापित करना होगा।

क्या दरजी से पीपा क्षत्रिय राजपूत बनने से OBC का  दर्जा समाप्त हो जाएगा.

            दरजी से पीपा क्षत्रिय राजपूत बनने से OBC का दर्जा समाप्त नहीं होगा। OBC का दर्जा हमें जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर प्राप्त हुआ है।

            पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज आर्थिक रूप से अत्यंत कमजोर एवं पिछड़ा हुआ है। इसलिए, दरजी से पीपा क्षत्रिय राजपूत के रूप में जातीय पहचान स्थापित करने के बावजूद हमारा OBC दर्जा बरकरार रहेगा।

            जातीय पहचान हमें हमारे गौरव और सम्मान को पुनः स्थापित करने में सहायक होगी, लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। इसलिए, हमें OBC  वर्ग में मिलने वाले लाभ पहले की तरह मिलते रहेंगे। 

पीपा क्षत्रिय राजपूत बनने के लाभ

1. जातीय गौरव और सम्मान की पुनर्स्थापना

            पीपा क्षत्रिय राजपूत नाम से हमारी पहचान मजबूत होगी। समाज में हमारी ऐतिहासिक और   सांस्कृतिक विरासत को पुनः स्थापित करने में मदद मिलेगी। जातीय पहचान से समाज का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ेगा।

2. सामाजिक एकता और संगठन शक्ति

            संगठित जातीय पहचान से समाज में एकता और सहयोग बढ़ेगा। इससे समाज को राजनीतिक और सामाजिक रूप से मजबूती मिलेगी।जो लोग दरजी जाति से अन्य जातियों में चले गए थे, वे वापस समाज से जुड़ सकते हैं। बड़े उद्योगपति, जैसे रमेश चौहान जी Parle G के निर्माता, जो पीपा क्षत्रिय समाज से थे, वे भी समाज से वापस जुड़कर अपने आप को गौरान्वित महसूस करेगे, जिससे समाज का आर्थिक विकास होगा। पीपा क्षत्रिय राजपुत कि जातीय पहचान बनने से फिर समाज का व्यक्ति कितना भी बड़ा आदमी बन जाए, समाज को साथ लेकर चलेगा क्योकि उसे अपने समाज पर गर्व होगा। 

3. OBC  दर्जा बरकरार रहेगा

            OBC का दर्जा हमें केवल जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर प्राप्त हुआ है।पीपा क्षत्रिय राजपूत नाम अपनाने के बावजूदOBC के अंतर्गत मिलने वाले सभी लाभ पहले की तरह जारी रहेंगे।

4. आर्थिक एवं शैक्षणिक लाभ

            OBC आरक्षण के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मिलने वाले लाभ जारी रहेंगे। समाज के आर्थिक विकास के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में सुविधा होगी। समाज के लोगों को बिना भय सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।

5. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पुनर्जागरण

            समाज को अपने इतिहास और परंपराओं से जोड़ने का अवसर मिलेगा। नई पीढ़ी को अपनी गौरवशाली विरासत के बारे में जागरूक किया जा सकेगा।

6. सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि

            क्षत्रिय राजपूत नाम से समाज को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। समाज के लोगो कि सम्पति पर कोई भी नाजायज कब्जा नहीं कर पायेगा, अन्य राजपूत समुदायों के साथ बेहतर संबंध और सामाजिक समरसता विकसित होगी। समाज के लोगों को बिना किसी भय के देश में कहीं भी जमीन-जायदाद खरीदने और सुरक्षित रूप से बसने का अवसर मिलेगा।

7. व्यापार और रोजगार के अवसर

            व्यापार के नए अवसर मिलेंगे और समाज के लोगों को आर्थिक रूप से आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। समाज के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा, जिससे व्यापारिक संबंध मजबूत होंगे। संगठित पहचान से समाज के व्यापारियों और उद्यमियों को अधिक समर्थन मिलेगा।

8. राजनीतिक सशक्तिकरण

            संगठित पहचान होने से समाज की राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व को मजबूती मिलेगी। सरकार की योजनाओं और नीतियों में समाज को अधिक प्रभावी भागीदारी मिलेगी। राजनीतिक रूप से संगठित होने से समाज को अधिक अधिकार और अवसर प्राप्त होंगे।

आइए, हम सब मिलकर अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए, अपनी समान्य गौरवपूर्ण पीपा क्षत्रिय राजपूत की पहचान को पुनः स्थापित करने के लिए संघर्ष करें।

यदि किसी की भावना आहत हुई हो, तो हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ

            मेरा उद्देश्य केवल समाज के हित और उत्थान के लिए जागरूकता फैलाना है, न कि किसी की भावनाओं को आहत करना। यदि मेरे शब्दों या विचारों से किसी भी व्यक्ति के हृदय को ठेस पहुँची हो, तो मैं हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ।

            पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज की वास्तविक पहचान को पुनः स्थापित करना हमारा मुख्य लक्ष्य है, जिससे समाज को उसका गौरव, सम्मान और आत्मसम्मान पुनः प्राप्त हो सके। यह प्रयास किसी भी जाति या समुदाय को नीचा दिखाने के लिए नहीं, बल्कि अपने समाज को सशक्त और संगठित करने के लिए किया जा रहा है।

            हमारा उद्देश्य है कि हर व्यक्ति अपनी पहचान, अधिकार और सामाजिक सुरक्षा को समझे तथा बिना किसी भय के आगे बढ़े। यदि कहीं पर भाषा की मर्यादा का उल्लंघन हुआ हो, तो कृपया उसे मेरी अज्ञानता समझकर क्षमा करें। हमारा संकल्प केवल समाज के सभी सदस्यों का कल्याण और उन्नति सुनिश्चित करना है।

Parle G, Bisleri  का हमने निर्माण किया।

जोधपुरी कोट से भारत का श्रृंगार किया।।

जब भारत की शान में योगदान हमारा।

फिर पहचान से भेदभाव कैसा यह सारा।।










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संत पीपा जी और पीपा क्षत्रिय राजपूत समाज